Wednesday, 25 September 2019

कोरी कल्पना नहीं बल्कि अनुभव और साधना है ‘साँसों के अनुबंध’






नदी के शांत स्थिर जल में एक कंकड़ गिरने से हलचल हो उठती है और इसकी तरंगें स्थिर जल को दूर तक झंकृत कर देती हैं, ठीक उसी प्रकार संवेदनशील मानव मन किसी वेदना या हर्षानुभूति से झंकृत हो उठता है, उसके शांत भाव तरंगित हो उठते हैं और यदि यह कवि हृदय हो तो उसके हृदय की तरंगें उसके कलम के माध्यम से पाठक के हृदय में भी तरंगें उत्पन्न करते हैं। व्यक्ति कहता है तो श्रोता उसे अपनी समझ के अनुसार समझता व महसूस करता है किंतु कवि/कवयित्री का कथन पाठक/श्रोता उसी रूप में सुनते व समझते हैं कि दोनों के भाव एकाकार हो जाते हैं। कवि हृदय ही हो सकता है जो प्रकृति से, समाज से अपनी साँसों का अनुबंध कर बैठे। ऐसे ही कवि व कवयित्री के भावों का सृजन है *साँसों का अनुबंध* कवि/कवयित्री  *सारिका मुकेश* जी ने पति-पत्नी के रूप में न सिर्फ एक-दूसरे के साथ साँसों का अनुबंध किया है बल्कि समभाव  सम स्वर रखते हुए लेखनी से भी साँसों का अनुबंध किया है और शब्दों के माध्यम से यही अनुबंध वह सदा-सदा के लिए पाठकों से बनाए रखने की कामना करते हैं।



सारिका मुकेश (कविगण)
 रोजमर्रा के जीवन में घटित होने वाली छोटी-छोटी ऐसी घटनाएँ होती हैं जिन्हें आमतौर पर हम सभी देखकर भी अनदेखा कर देते हैं या फिर वह निरंतर होने वाली प्रक्रिया होने के कारण सभी के लिए अत्यंत साधारण व महत्वहीन बात हो जाती है जबकि वही बात कवि के लिए बेहद महत्वपूर्ण बन जाती है। जैसे- इस संग्रह की एक बहुत ही छोटी किंतु विस्तृत व गूढ़ भावों को समेटे और गहन विचारोन्मुख कविता *आधुनिक जीवन* है, इस कविता के माध्यम से प्रकृति से दूर होते भौतिक सुख सुविधाओं में लिप्त मानवीय जीवन का बेहद सजीव चित्रण किया गया है। दृष्टव्य है- देर दोपहर तक/दरवाजे के बाहर/गैलरी में पड़े/अखबार और दूध की तरह/पड़ी रही सुबह....इनकी कविताएँ छंदों की सीमा में न बँधकर भावों के खुले आकाश में स्वतंत्र उड़ान भरती हुई प्रतीत होती हैं। ये स्वयं कविता को किसी सीमा में न बाँधते हुए भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम और ईश्वर से एकाकार होने का स्रोत बताते हैं। 'कविता: एक परिभाषा' के माध्यम से कहते हैं- कविता.. मंदिर में होने वाली/शाम की आरती है/ जहाँ शब्द पुष्प हैं/श्रोता ईश्वर है/और कवि प्रार्थी है.. कवि/कवयित्री ने सतत लेखन को को ही अपने जीवन का उद्देश्य बनाते हुए लेखन को ही जीवित होने का साक्ष्य माना है क्योंकि लेखन के लिए संवेदनशील हृदय का होना आवश्यक है और संवेदनशील बनकर जीने को ही सार्थक मानते हैं। इन्होंने जीवन को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखा है, कभी यह प्रकृति के प्रति अति संवेदनशील तो कभी जीवन को गणितीय दृष्टिकोण से भी देखने लगते हैं और अपनी रचना के माध्यम से जीवनमूल्यों को बहुत आसानी से बेहद कम शब्दों में समझाने में सफल भी हुए हैं। यथा- जीवन का गणित/धन, ऋण, गुणा, भाग/ प्रेम-धन/घृणा-ऋण/अच्छाई-गुणा/बुराई-भाग..कवि/कवयित्री जहाँ 'परिवर्तन' कविता में चंद पंक्तियों में ही बड़ी बात कह देने में सफल हुए हैं वहीं 'चरैवेति चरैवेति जैसी मध्यमाकार कविताएँ भी हैं जो परिवर्तनशीलता को अपनाते हुए सदैव गतिमान रहने का संदेश देती हैं। ये समय के साथ परिवर्तन को अपनाने के लिए सदैव तत्पर हैं  किंतु इनका कोमल हृदय अखबार में रोजाना नकारात्मक खबरों से बेहद व्यथित होता है और कदाचित यही कारण है कि सूर्यास्त के साथ आती रात के सन्नाटे से व अकेलेपन से भयभीत भी प्रतीत होते हैं। सारिका मुकेश जी द्वारा प्रतीक बिंबों का भी भरपूर प्रयोग किया गया है, जैसे- 'नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर' कविता में सर्द मौसम की सजीवता हेतु- 'गुच्छा सा बैठा आदमी', तथा आकाश में/हँसिए की तरह/चमकते चाँद के/ डर के मारे/नन्हें बच्चों की तरह/आकाश की गोद में दुबके पड़े तारे। या फिर निशा की पलकों पर/ओस के मोती/अश्रुकण बन /पिघलते रहे/रातभर। ऐसे न जाने कितने ही प्रतीक बिंब इनकी रचनाओं को बेहद सजीव और प्रभावशाली बना देते हैं।
वर्तमान समय की निरंतर दौड़ती भागती जिंदगी को इन्होंने 'आज का आदमी' के माध्यम से बेहद रोचकता से प्रस्तुत किया है, यथा- अपनी ही पूँछ को/मुँह में भर लेने की/पवित्र इच्छा लिए/पागल कुत्ते की भाँति/दौड़ता रहता है/आज का आदमी/घूमता रहता है गोल गोल....कवि हृदय जहाँ प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत होता है, 'प्रिय कौन हो तुम' और 'मैं जब भी तुमसे मिलता हूँ' जैसी श्रृंगार आधारित कविताओं का सृजन कर श्रृंगार रस का रसास्वादन भी करवाता है तथा समाज के परिवर्तित होती मान्यताओं को भी स्वीकार करता है, वहीं समाज की विकृतियों को देखकर उसका हृदय उद्वेलित भी होता है। समाज की विकृत मानसिकता के लोगों की चुभती नजरों का दंश झेलती लड़की के हृदय की व्यथा को समझते हुए इसे 'दृष्टि बलात्कार' की संज्ञा दी है।
प्रेम, भाईचारा, आपसी मेलजोल वाली ज़िंदगी से दूर हो चुके बड़े-बड़े अपार्टमेंट में एकाकी जीवन जीते लोगों के जीवन पर तरस खाते हुए कहती हैं 'मुझको तो आद्यक्षर लगते/अपार्टमेंट्स के लोग' छोटी-बड़ी इक्यासी कविताओं का संकलन है 'साँसों के अनुबंध' अधिकतर कविताएँ बहुत छोटी हैं, इनके छोटे आकार में गूढ़ भाव के समाहित होने के कारण ही क्षणिकाओं का भ्रम उत्पन्न होता है।  यदि कहा जाए कि इन्होंने अपनी रचनाओं में गागर में सागर भर दिया है तो अतिशयोक्ति न होगी।
सारिका मुकेश जी की रचनाओं में प्रेम, आपसी सौहार्द्र, आत्मावलोकन, समाज के प्रति जागरूकता, चिंतन, करुणा, उद्वेलन, सतत सीखते रहने के गुण आदि सभी भाव देखने को मिलते हैं। यह पुस्तक कवयित्री की कोरी कल्पना नहीं बल्कि अनुभव और साधना है। सारिका मुकेश जी को उनके इस कृतित्व के लिए मेरी शुभकामनाएँ।
संजीव प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य मात्र 200/ रुपए है। हम सभी को कवयित्री के इस साहित्यिक साधना को अपनी शुभकामनाओं से अभिमंत्रित करना चाहिए। 


मालती मिश्रा 'मयंती', नई दिल्ली 



मालती मिश्रा 'मयंती'
नई दिल्ली 








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पुस्तक: साँसों के अनुबंध
कवि: सारिका मुकेश
प्रकाशक: संजीव प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण: 2018
मूल्य: 200.00 रुपये
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Friday, 20 September 2019

पाठकों से सम्वाद करता कविता संग्रह ‘साँसों के अनुबंध’



वी.आई.टी., वेल्लौर (तमिलनाडु) में अंग्रेजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर और विभाग अध्यक्ष डॉ. सारिका मुकेश जी का जिंदगी से सम्वाद करता चतुर्थ कविता संग्रह है- ‘सांसों के अनुबंध’, जो संवेदनाओं से भरा हुआ है। नई दिशा, नई सोच, नया नजरिया पूरी तरह और साफ-साफ इस संग्रह में दिखाने की कोशिश रही है। इस कविता संग्रह में आप पूरी तरह सम्वाद में डूबे हुए नजर आएंगे। कविता के जरिए समाज, जीवन, एकांत के पलों के साथ किए सम्वाद को बखूबी अपनी रचनाओं में रचनाकार ने उकेरा है।











सारिका मुकेश (कविगण) 



















‘सांसों के अनुबंध’ सारिका मुकेश जी की कविता संग्रह है, जिसमें उन्होंने अपने अंदर महसूस किए हर सुख-दुख, अनुभूति को लेखन का रूप दिया है। यह संग्रह कविता "आधुनिक प्रेम" से शुरू होकर "फिर लीन हो गई एक बूंद" पर समाप्त हो जाता है। आधुनिक प्रेम में उन्होंने आधुनिक प्रेम को पत्ते पर पड़ी ओस की बूँद जैसा बताया है, जो सूरज की किरण पाते ही उड़ कर भाग जाती है सदा सदा के लिए और एक हद तक यह सच्चाई है; आज के समय के हिसाब से। "जीवन का गणित" में जीवन का प्रेम, घृणा, अच्छाई, बुराई  के भाग को बताया है। उनकी कविता "परिवर्तन" में आज के मॉडर्न युग को दर्शाया गया है, जहां घरों में पहले दीवारों पर फ्रेम में पारिवारिक सदस्य रहते थे, आज वहाँ आर्ट पेंटिंग, चील, तोते, कबूतर ने जगह बना ली है। आधुनिक जीवन को भी उन्होंने बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया है, अपनी कविता "आधुनिक जीवन" में। "परमात्मा और प्रेम", "अखबार", "निर्मल मन", "जीवन चक्र" कविताओं में जीवन की सच्चाई को पूरी तरह दर्शाया है। आप ये कविताएं पढ़ेंगे तो आप इसमें पूरी तरह डूब जाएंगे । आप अपने आपको वहाँ महसूस करने लगेंगे।
"आज्ञाकारी पुत्र" और "आज्ञाकारी पुत्री" में विवाह प्रस्ताव को लेकर पुत्र और पुत्री के विचारों पर सुंदर कविता लिखी है सारिका मुकेश ने। सबसे ज्यादा मेरे मन को छू लेने वाली और सटीक सच्चाई  लिखी गई कविता रही-"हिंदी कवि" और "सांसों के अनुबंध"। “हिंदी कवि”, जिसमें बेचारे हिन्दी कवि के दर्द को बखूबी उतारा गया है। किस तरह एक कवि दिन-रात आँखें फोड़ कर एक-एक शब्द सलीके से जोड़कर उन्हें संकलित करता है, फिर अपने ही खर्च पर छपवाता भी है और फ़िर एक-एक प्रति अपने परिचित/मित्रों को रजिस्टर्ड डाक द्वारा भिजवा कर प्रतिक्रिया की इंतजार में रहता है-कुछ शुभकामनाएं, कुछ अच्छे शब्द सुनने सुनने को, लेकिन आशा, प्रतीक्षा करते रोज दिन गुजरता जाता है और कोई जवाब न आने पर उसका मन दुखी होता है, जब किसी को देखने तक की फुर्सत नहीं होती। खुद फ़ोन करके पूछो तो कोई कहेगा अभी तो कवर ही देखी है, बाकी नहीं देख पाया...अभी पढ़ा ही नहीं, समय ही नहीं मिला...ऐसे जवाब सुनकर कवि के दिल में जो दर्द उठता होगा शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती। रचनाओं पर प्रशंसा की फुहार, बड़ों का आशीर्वाद और स्नेह, मित्रों का हृदय से असीम प्यार...कुछ भी तो नहीं मिलता अब! कभी-कभी यह सोचकर मन रोता है कि साहित्य समाज का दर्पण कहलाता है, उसे नई दिशा दिखाता है तो फिर उसका सम्मान मात्र एक चादर, प्रतीक चिन्ह और सर्टिफिकेट में ही सिमटकर क्यों रह जाता है...दिल को छू लेने वाली कविता है ये और आंखों में दर्द छलका देने वाली कविता!
सारिका मुकेश जी ने बहुत से सुंदर सपनों से सजाया है यह 81 कविताओं का संग्रह- "सांसों के अनुबंध"। हर कविता जीवन की सच्चाई को बयां करती है। "सफल होंगे प्रयास", "अभिलाषा", "अपने-अपने भगवान", "जीवन एक यात्रा",  "मैं जब भी तुमसे मिलता हूँ" आदि बहुत ही सुंदर कविताएं हैं। "कविता एक परिभाषा" जीवन के सुख-दुख को समझाती तो "कौन हो तुम" रिश्तों को बताती हुई खूबसूरत कविताएं हैं। उनकी हर कविता सच्चाई से भरी हुई है। "साँसों के अनुबंध" कविता संग्रह निश्चित ही सच्चाई को बयां करता है। आज के परिवेश को दर्शाती और माहौल पर विचार करती सच्चाई से भरी कविताओं का संग्रह है ये! मैंने इसे बहुत बारीकी से कई बार पढ़ा है। एक-एक शब्द दिल को छू लेने वाला है।मेरी तरफ़ से सारिका मुकेश जी को बहुत-बहुत धन्यवाद कि उन्होंने मुझे इस कविता संग्रह से रूबरू होने का मौका दिया। इस कविता संग्रह की सफलता के लिए आपको ढेर सारी शुभकामनाएं और हार्दिक बधाई।
अंत में- होवे संवाद परमपिता से आओ करें कुछ ऐसा प्रबंध, इससे पहले कि पूरे हो सांसों के अनुबंध.... । एक बार पुस्तक पढ़ने बैठेंगे तो आप इसे छोड़ नहीं पाएंगे। इस पुस्तक की हर कविता आपके दिल और दिमाग को झकझोर देगी। एक से बढ़कर एक रचना लिखी है रचनाकार ने। निश्चित ही यह पुस्तक पाठकों के मन को मोह लेगी। प्रकाशक ने पुस्तक को आकर्षक साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत किया है। पाठकों को एक रोचक कविता संग्रह उपलब्ध कराने के लिए सारिका मुकेश जी को हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएं।



समीक्षक


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पुस्तक का नाम: साँसों के अनुबंध
लेखक: सारिका मुकेश 
प्रकाशक: संजीव प्रकाशन, दरियागंज, नई दिल्ली
संस्करण: 2018
मूल्य: 200.00 रुपये

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