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Thursday, 1 November 2012
रचना जिंदगी की आलोचना होती है! जिंदगी की कल्पना की ओर से की गई जिंदगी के यथार्थ की आलोचना! जिंदगी की समर्थता की ओर से की गई जिंदगी की असमर्थता की आलोचना! --अमृता प्रीतम
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