पंछी, नदिया और पवन के झोंके की तरह ही साहित्य, कला और संस्कृति आदिकाल से एक देश से दूसरे देश का सफ़र निर्बाध गति से करती रही हैं। हिन्दी साहित्य ने भी न जाने कितनी अन्य भाषा की विधाओं को अपने में समाविष्ट किया है। भाषा का महत्त्व शब्दों के संचार से कहीं अधिक है। यह संस्कृति, समाज, आस्था के साथ-साथ अन्य मनोभावों की अभिव्यक्ति है। जैसा कि एंथनी बर्गेस कहते हैं-‘अनुवाद केवल शब्दों का विषय नहीं है-यह एक संपूर्ण संस्कृति को बोधगम्य बनाने का विषय है।’ मूल भाषा में संप्रेषित संस्कृति अनुवाद के माध्यम से दूसरी भाषाओं में संचारित की जाती है। यह जोखिम भरा कार्य है क्योंकि ‘दूसरी भाषा का होना दूसरी आत्मा का होना है-शारलेमेन।’ भाषाओं का अनुवाद हो सकता है भावनाओं का नहीं, इन्हे समझना पड़ता है। वस्तुतः अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी पाठ का उसके वर्तमान रूप से अर्थ निकालकर उसे दूसरी भाषा के भिन्न रूप में प्रस्तुत करने के सिद्धांत पर आधारित है। पॉल वैलेरी का कथन है-‘अनुवाद करना विभिन्न तरीकों से समान प्रभाव उत्पन्न करना है।’ इसीलिए अनुवादक को द्विभाषी होने के संग अनुवाद कौशल तथा दोनों भाषाओं में लंबे समय से चले आ रहे संचार और लेखन के अनुभवों का होना आवश्यक है। कुल मिलाकर सैमुअल पुटनाम का कथन स्मरण हो आता है-‘अनुवाद में भाषा की सुविधा ही पर्याप्त नहीं है; खून और पसीना ही रहस्य है।’ आज जबकि हम एक क्लिक से संपूर्ण विश्व से जुड़ने में सक्षम हो गए हैं और वैश्वीकरण, भौगोलीकरण, ग्लोबल विलेज जैसी अवधारणा को अंगीकार कर चुके हैं, ऐसे माहौल में अनुवाद का महत्त्व व्यवसायिक दृष्टि से भी बढ़ गया है।
एक सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यिक परिवार से संबंध रखने वाले एवम् वर्तमान में वीआईटी वेल्लोर में स्पेनी भाषा के एसोसिएट प्राफेसर के रूप में कार्यरत सव्यसाची मिश्र जी द्वारा अनूदित ‘कोर्तेस के पत्र’ (दो भागों में) में हमारे समक्ष उपस्थित है। सव्यसाची जी इससे पहले भी स्पेनी भाषा की कई रचनाओं के साथ ही ‘स्वर्णिम युग के स्पेनी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’ का हिन्दी अनुवाद कर चुके हैं।
एरनान कोर्तेस का जन्म एक सामान्य कुलीन परिवार में 1485 ई. में हुआ था। इनके बचपन के बारे में बहुत जानकारी उपलब्ध नहीं है। वह विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ कर अल्प आयु में ही स्पेनी सम्राट के समुद्र पार के क्षेत्रों की देख-भाल तथा वहाँ स्पेनी बस्तियाँ बसाने के लिए चले गए। एक सैन्य मुहिम में अमरीकी प्रायद्वीप में काफी रक्तपात के बाद उन क्षेत्रों को स्पेनी साम्राज्य में शामिल करने में सफल रहे और इन प्रांतों का नामांकन नुएवा एस्पान्या किया। आसतेक साम्राज्य को स्पेनी शासन के अंतर्गत लाने में इन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 1529 ई. में इन्हें मारकेस दे वाइये दे ओहाका की उपाधि से सम्मानित किया गया। आरंभ में अपना नाम एरनांदो अथवा फेरनांदो लिखाने के बाद अपने नाम का संक्षिप्त रूप एरनान का ही उपयोग करते रहे। एरनान कोर्तेस को सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में आधुनिक मेक्सिको में अवस्थित आसतेक साम्राज्य को स्पेनी शासन के अंतर्गत लाने वाले एक प्रमुख सैन्य और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में जाना जाता है।
सन् 1519 ई. से लेकर 1526 ई. तक की अवधि के दौरान कोर्तेस ने महामहिम सम्राट कार्लोस पंचम् के लिए पाँच राजकीय विवरण लिखे। खाकोबो क्रोमबेरगेर ने इन विवरण का नाम कोर्तेस के पत्र रखा और इन विवरणों में कोर्तेस ने अपने कार्यों की औचित्यता दर्शाई है। कई भाषाओं में अनूदित कोर्सेस के पत्र स्पेनी साहित्य की धरोहर कृतियों में से एक हैं। एक सैन्य मुहिम पर निकलने से लेकर, आसतेक शासन व्यवस्था, उसके स्पेनी नियंत्रण से लेकर मध्य अमरीका में अवस्थित आधुनिक होण्डुरास तक का विवरण इन राजकीय पत्रों में मिलता है। इतिहास के एक अध्याय की भाँति ये पत्र तत्कालीन आसतेक समुदाय, उनकी शासन-व्यवस्था तथा अपनी स्वतंत्रता को कायम रखने की उनके अक्षुण्ण संघर्ष को दर्शाने के साथ ही, स्पेनी शासन-व्यवस्था के अंतर्गत उन प्रांतों में किए गए नीतिगत बदलाव और अत्याचारों को भी बखूबी चित्रित करती हैं। ईसाई धार्मिक सिद्धांतों और स्पेनी सम्राट कार्लोस पंचम् के कति कोर्तेस की आस्था और विश्वास को भी इन पत्रों में स्पष्ट देखा जा सकता है।
इन विवरणों को पढ़ना इसलिए भी जरूरी है कि ये आधुनिक मेक्सिको को समझने में मदद करती हैं। इन विवरणों के आधार पर कई सारी किताबें भी लिखी जा चुकी हैं, फिल्में भी बनी हैं, और कई सारे ऐतिहासिक पात्रों के व्यक्तित्व पर गहन शोध भी हुआ है। उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण से कई सारे ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे गए हैं। स्पेनिश भाषा का अध्येता होने के नाते हिन्दी पाठकों को इस भाषा के धरोहरों से परिचित करवा के सव्यसाची जी ने अपने एक उत्तरदायित्व का निर्वाह बख़ूबी किया है, जिसके लिए वह निश्चित ही साधुवाद के पात्र हैं क्योंकि यह कार्य कहीं से भी आसान नहीं है, जिसे उनकी धर्मपत्नी सोफिया मकारोवा के आत्मीय सहयोग ने भी पूर्ण करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। उनकी इन कृतियों के उज्ज्वल भविष्य हेतु हमारी अहर्निश शुभकामनाएँ। चरैवेति! चरैवेति!!
इत्यलम्।।
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सारिका मुकेश |
सारिका मुकेश
(तमिलनाडू)
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पुस्तक - कोर्तेस के पत्र (भाग-1 एवम् 2)
मूल लेखक - एरनान कोर्तेस
अनुवाद - सव्यसाची मिश्र
प्रकाशक - प्रथम प्रकाशन गृह, शाहदरा, दिल्ली-110032
प्रथम संस्करण - 2025
मूल्य - 400/- एवम् 600/- रुपए
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Hardik badhai evam shubhkamnaye
ReplyDeleteआपका आशीर्वाद है, मैडम!
Deleteहार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं!
Deleteकोर्तेस के विवरणों का महत्व सामाजिक, राजनैतिक और कानूनी रूप से भी है। एक नई व्यवस्था को स्थापित करने से पहले तत्कालीन मेक्सिकी व्यवस्था को प्रशासनिक और धार्मिक रूप से बदलने से पहले के तमाम जोखिमों को कोर्तेस और उनके सहयोगी उठाते हैं और इन दस्तावेजों के जरिए इस पूरी प्रक्रिया के बारे में पता चलता है।
ReplyDeleteसर ने मेरे इस अनुवाद की प्रशंसा की, मेरा मान बढ़ाया, और ईमानदारी से कुछ बेहतर करने के बारे में बताया, इससे बढ़कर एक अनुवादक का सम्मान और क्या हो सकता है!
इन पुस्तकों को पढ़ना हिन्दी भाषी पाठकों के लिए इस लिए भी आवश्यक है कि इससे उन्हें विश्व साहित्य संसार के अनमोल धरोहरों को मूल से हुए अनुवाद के बारे में भी जानने के बारे में पता है क्योंकि एक तीसरी भाषा से हुए अनुवाद में कई विषय गौण हो जाते हैं। इन का सामाजिक और समाजशास्त्रीय महत्व भी हैं।
आपका कथन सत्य है। अनुवाद के माध्यम से हमें विश्व साहित्य और संस्कृति की जानकारी मिलती है, जो न केवल हमारे ज्ञान में वृद्धि करती है अपितु हमारे दृष्टिकोण को भी व्यापक बनाती है। पुस्तको से रूबरू कराने के लिए आपका पुन: आभार। इसी तरह मां सरस्वती की आराधना करते रहिए। हार्दिक शुभकामनाएं!
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