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Saturday, 4 August 2012
मैं साहित्य को मनुष्य की दृष्टि से देखने का पक्षपाती हूँ; जो वाग्जाल मनुष्य को दुर्गति, हीनता और परोपेक्षिता से ना बचा सके, उसके ह्रदय को परदुःखकातर न बना सके, उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है! ----आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
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