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Saturday, 4 August 2012
लगता है सारी जिंदगी जो भी सोचती रही, लिखती रही, वह सब शायद देवताओं को जगाने का ही एक प्रयत्न था- उन देवताओं को जो इंसान के भीतर सो गए हैं! ----अमृता प्रीतम
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