तकदीर बनाने वाले तूने कमी न की,
अब किसको क्या मिला यह मुकद्दर की बात है…
आज हम आपको एक ऐसे शख्स से रू-ब-रू कराने जा रहे
हैं, जो प्रतिभा के मामले में मुक़द्दर के धनी हैं। पेशे से स्कूल में शिक्षक श्री
अशोक अंजुम अलीगढ़ (उ.प्र.) में रहकर हिन्दी की एक सुप्रसिद्ध त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव
प्रयास’ का संपादन/प्रकाशन करते हैं और पर्यावरण को समर्पित पत्रिका ‘हमारी धरती’
के सलाहकार सम्पादक भी हैं। वो बढ़िया रेखाचित्र/कार्टून बनाते हैं और लेखन की अनेक
विधाओं में स्वयं को सिद्ध कर चुके हैं। वैसे मूल रूप से हास्य-व्यंग्य उनके भीतर
इस तरह रचा-बसा है कि न केवल वाट्सएप बल्कि फोन पर बातें करते हुए भी उसके दर्शन सहज
ही उपलब्ध हो जाते हैं।

श्री अशोक अंजुम काव्य-मंचों पर व्यंग्य-कवि,
ग़ज़लकार और दोहाकार के रूप में चर्चित और ‘अलीगढ़ एंथम’ के रचयिता हैं।
हास्य-व्यंग्य, गीत-संग्रह, ग़ज़ल, कविता, दोहा, लघुकथा आदि विधाओं पर अट्ठारह मौलिक
और सैंतीस सम्पादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अब तक विभिन्न भाषाओं में इनकी
रचनाओं का अनुवाद हो चुका है। इसके अतिरिक्त डॉ. जितेन्द्र जौहर द्वारा सम्पादित
‘अशोक अंजुम: व्यक्ति एवं अभिव्यक्ति’ प्रकाशित हुई है। इनकी रचनाएं अनेकों
पाठ्यक्रम में सम्मिलित हुई हैं और अनेकों शोध-ग्रंथों में प्रमुखता से उनका
उल्लेख हुआ है। टी.वी. के दर्जनों चैनल्स पर अनेकों बार काव्य-पथ कर चुके अंजुम
अनेकों सम्मान और पुरस्कार प्राप्त कर चके हैं। जिसमें एक लाख एक हज़ार रूपए का
प्रशासन द्वारा प्रदत्त ‘नीरज पुरस्कार-२०१४’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। प्रो. डॉ. शेख मुख्तियार शेख
वहाब, औरंगाबाद, महाराष्ट्के
निर्देशन में सुश्री राबन मुल्ला खुदाबख्श जी आपके ग़ज़ल साहित्य में
अभिव्यक्त विभिन्न चेतनाओं पर शोध कार्य कर रही हैं। हमारा
मानना है कि हिंदी साहित्य के समकालीन इतिहास में अंजुम जी का समस्त साहित्यिक
योगदान अवश्य सराहा जाएगा। ईश्वर से कामना है कि वो अपने सम्पूर्ण कार्य क्षेत्र
में सदैव इसी तरह प्रगतिशील रहें।
आईए, अब बिना किसी अतिरिक्त भूमिका के उनके कुछ
चर्चित शेरों और दोहों का लुत्फ़ उठा लिया जाए-‘हम हैं गायक वक़्त के, सच सच करते
बात/हर युग में जीते रहे बनकर हम सुकरात’, ‘रात स्वप्न में दोस्तों देखे अज़ब
प्रसंग/संसद में मुज़रा हुआ, चंबल में सत्संग’, ‘अरी व्यवस्था क्या कहें तेरा नहीं
जवाब.जिनको पानी चाहिए उनको मिले शराब’, ‘ना जाने किस जन्म के, भोग रही है
भोग/कुर्सी तेरे भाग्य में, दो कौड़ी के
लोग’, ‘ये राजनीती भी तो तवायफ़ से कम नहीं/पकड़ा है उसका हाथ, इधर छोड़ रही है’,
‘मैं मंदिर में नहीं जाता/मैं मस्जिद भी नहीं जाता/मगर जिस दर पे झुक जाऊँ/वो तेरा
दर निकलता है’, ‘पत्तियाँ हिलती नहीं, ख़ामोश हैं/पूछती किसका पता रुककर हवा’,
‘साबुत हैं सर और अभी/फेंको पत्थर और अभी’, ‘थरथराता प्राण का यह पुल/कहाँ हो
तुम?’, आमंत्रण देता रहा, प्रिया तुम्हारा गाँव/सपनों में चलते रहे रात-रात भर
पाँव’, ‘मैंने पूछा कि क्यों नहीं आए/उसने मुस्का के कह दिया बस यूँ ही’, ‘मधुमय
बंधन बाँधकर, कल लौटी बारात/हरी काँच की चूड़ियाँ खनकीं सारी रात’, ‘कि मेरे सर पे
है माँ की दुआओं का घना साया/मुझे एहसास ये हर एक डर से दूर रखता है’, ‘है बहुत
कुछ पास, फिर भी कुछ नहीं है/ज़िन्दगी की झील में काई जमी है’, ‘खाना-पीना, हँसी-ठिठोली,
सारा कारोबार अलग/जाने क्या-क्या कर देती है, आँगन की दीवार अलग’, ‘लोग कहते हो
उम्दा लिखते हो/मैं ये खोजूँ लिख रहा कौन’...।
अंत में, हम अंजुम जी के स्वस्थ,
यशस्वी और दीर्घ जीवन की कामना हुए उन्हें हिंदी साहित्य में निरंतर
संवृद्धि करने हेतु अपनी अहर्निश शुभकामनाएं और अनंत हार्दिक बधाई ज्ञापित करते
हैं। हमें यकीन है कि श्री अशोक अंजुम जी पर केन्द्रित यह विशेषांक
समस्त साहित्य-प्रेमियों और शोधार्थियों के लिए
न केवल पठनीय बल्कि उपयोगी तथा संग्रहणीय सिद्ध होगा और हिंदी साहित्य जगत् में
इसका भरपूर स्वागत होगा। हिंदी साहित्य जगत् इस विशेषांक के माध्यम से अंजुम जी के
संपूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व से और अधिक अच्छी तरह से रू-ब-रू हो सकेगा। अब उन्हीं के इस शेर के साथ विदा-
‘जहाँ तक
तुम नहीं जाते, जहाँ तक हम नहीं जाते
वहाँ के मोतियों को एक शायर ढूँढ़ लेता है’।
इत्यलम।।
सारिका मुकेश
24 जनवरी 2020
24 जनवरी 2020
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सारिका मुकेश |
jai ho!
ReplyDeletehardik badhai!!
आपने बहुत अच्छी समीक्षा की इसके लिए आपको धन्यवाद.अशोक जी सचमुच बहुमुखी प्रतिभा के धनी है.उनको शब्दों मेंबाध पाना वैसे ही मुश्किल है जैसे सूर्य को दीपक दिखाना.फिर भी मैंने एक छोटा- सा प्रयास किया आपको पसंद आया यह मेरा सौभाग्य
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!
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