Sunday, 5 April 2020

बिन्दु से सिन्धु तक के सफ़र की दास्ताँ कहता विशेषांक...




 जिंदगी को ख़ूबसूरत दाँव तक ले जाएगी, ये समय की धूप ही तो छाँव तक ले जाएगी



‘ज़िन्दगी एक सफ़र है सुहाना...’। सच में यह ज़िन्दगी एक सफ़र ही तो है और जब हम शौहरत, नाम की बुलन्दियों पर, एक ख़ास मुकाम पर पहुँचते हैं तो सुकून के पलों में वहाँ कुछ पल ठहरकर निश्चय ही पीछे के सफ़र को देखने का मन हो आता है...’क्या खोया, क्या पाया जग में’...मन करता है कि गुज़रे हुए पड़ावों को कुछ देर तक मौन रहकर निहारते रहें...कुछ देर फिर से उन पुरानी यादों की ज़िया जाए। कुछ ऐसा ही उपक्रम होता है किसी साहित्यकार पर केन्द्रित किसी पत्रिका का विशेषांक! यह कुछ अर्थों में आम पाठक को उस साहित्यकार की गुजरी हुई जीवन/सृजन यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण देता है। इससे लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व के संग उसके कुछ अनछुए पहलुओं से शब्द-परिचय होने में मदद मिलती है। समय-समय पर पत्र-पत्रिकाएँ साहित्यकार विशेषांक निकालते रहते हैं। सच कहें तो धीरे-धीरे यह भी साहित्य की एक विधा ही बनती जा रही है। इसमें प्राय: लेख़क के विषय में अन्य लेखकों की व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा पत्र/साक्षात्कार/समीक्षा आदि के माध्यम से प्रचूर मात्रा में उपलब्ध कराई जाती है। एक ही स्थल पर इतनी सारी सामग्री किसी भी पाठक, लेखक, आलोचक और  शोधकर्त्ता के लिए बहुत उपयोगी साबित होती है। इन्हीं सब विशिष्टताओं के साथ सहारनपुर (उ.प्र.) से प्रकाशित साहित्य की शीतलता और जीवन की जीवंतता का मंत्र लिए सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका “शीतल वाणी” का ताज़ा संयुक्तांक (अक्टूबर 2019-मार्च 2020), गीतवंत राजेन्द्र राजन विशेषांक के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित हो अपनी सुगंधि से मन को मोह रहा है। राजन जी का मोहक चित्र लिए मुखपृष्ठ, आर्ट पेपर पर बने सुन्दर और ऐतिहासिक चित्रों से सुसज्जित और 164 पृष्ठों में सहेजी बेहतरीन सामग्री लिए यह विशेषांक ‘लव एट फ़र्स्ट साइट’ वाली उक्ति को चरितार्थ करने में पूर्ण-रूपेण सक्षम है। इसके लिए सम्पादक सहित पत्रिका की पूरी टीम साधुवाद की पात्र है। दरअसल पत्रिका के सम्पादक श्री वीरेन्द्र आज़म और राजन जी लम्बे समय से पूर्ण आत्मीयता और प्रेम से जुड़े हैं, जिसकी चमक इस विशेषांक को चार चाँद लगा रही है। ‘अपनी बात’ में श्री वीरेन्द्र जी लिखते हैं-“गीत पंडित राजेन्द्र राजन मेरे अपने शहर के हैं...उनका काव्य सफ़र और मेरा पत्रकारिता सफ़र करीब साढ़े चार दशक पहले साथ-साथ शुरू हुआ...पत्रकारिता में सक्रिय हो जाने के कारण मैं काव्य मंचों पर तो उनका साथ नहीं दे पाया, लेकिन उनकी साढ़े चार दशक की गीत यात्रा से बराबर होकर गुजरा हूँ...उनके जिस गीत ने मुझे उनसे जोड़ा, जो आज भी मेरी अन्तश्चेतना में कुंडली मारकर बैठा है, वह गीत है-मैं पात-पात झर गया...यह अंक राजन जी के साहित्य के प्रति समर्पण और साधना को भी प्रणाम है और ‘शीतलवाणी’ परिवार की ओर से उनका अभिनंदन भी”।


गीतवंत राजेन्द्र राजन विशेषांक


पिछले कई बरसों से लालकिला, दूरदर्शन और तमाम कवि-सम्मेलनों में गीतकार श्री राजेन्द्र ‘राजन’ जी अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। अपने गीतों/मुक्तकों और ग़ज़ल के सहारे प्रेम के इन्द्रधनुषी कैनवास पर शब्द-चित्र बनाकर उन्हें अपने मधुर कंठ से गाकर श्रोताओं के दिल में उभारते/उतारते रहे हैं। जीवन के तमाम उतर-चढ़ाव देखने के बावजूद वो सदा संतुलित बने रहे। आज वो साहित्याकाश में गीतकार के रूप में एक दैदीप्यमान सितारा बनकर जगमगा रहे हैं; तमाम अभावों के बावजूद मुसकुराते हुए...उनके सारे अभाव, दुःख दर्द गीत की धारा में समाहित हो गए हैं। ‘दिलों में जिनके लगती है वो आँखों से नहीं रोते...’, राजन जी के विषय में यह अशआर सोलह आने सच है कि वो आँखों से नहीं रोते पर उससे भी बड़ा सच यह है उनके गीतों/मुक्तकों/शेरों में टीस/पीड़ा/दर्द का स्वर प्राय: मुखर हो उठता है और यही कोयल के कंठ से निकली पपीहे की दर्द भरी रटन ही उनकी यू.एस.पी भी है और ऐसा कोई कवि सम्मलेन नहीं होता जो उनके दो भावप्रवण गीतों-‘केवल दो गीत लिखे मैंने, इक गीत तुम्हारे हँसने का, इक गीत तुम्हारे रोने का’ और ‘मैं पात-पात झर गया, वसन्त लाने के लिए’-के बिना पूर्ण हो जाए। सरल, सहज, निश्छल मन से की गई जीवन के अनेक प्रसंगों की सच्ची अभिव्यक्ति मन को भा जाती है और उनके शेर/गीत ख़ुद-ब-ख़ुद मन में ऐसे रच बस जाते हैं कि जब-तब स्वत: ही जुबान पर आ जाते हैं और हम गुनगुना उठते हैं। वो न केवल बड़ों बल्कि बच्चों तक अपना प्रभाव कायम कर लेते हैं। मेरा पाँच वर्षीय पुत्र औरव सुबह-सुबह स्कूल जाते वक़्त उनका यह शेर कहता है-‘दुनिया ने मुश्किलों के मुझे यूँ किया हवाले, मुझे आसमान देकर मेरे पंख नोच डाले’। वहीं शाम के वक़्त जब हम अपने दोनों पुत्रों को पार्क से घर चलकर पढ़ाई करने को कहते हैं तो हमारा दस वर्षीय पुत्र अगस्त्य गाता है-‘बच्चों की कोमल काया पर मम्मी अधिकार जमाती है, मन रमता है पार्क में पर हमको घर पर ले जाती है, ऐसे में जीने मरने पर खुद को अधिकार कहाँ होगा...’। हमने एक दिन जब राजन जी को यह फ़ोन पर बताया तो वो खूब देर तक हँसते रहे और दोनों बच्चों को कवि बनने का आशीष भी दे डाला। अपनी रचनाओं के माध्यम से सबके दिलों में इस तरह उतर जाना एक रचनाकार की सफ़लता का द्योतक है। वो अपने सृजन-कर्म से पूरी तरह आश्वस्त हैं और अन्य सबको भी बता देना चाहते हैं-‘ये न सोचो सिर्फ़ चादर तानकर सो जाऊँगा, मैं मरूँगा तो ग़ज़ल का काफ़िया हो जाऊँगा’। उनके विषय में कितना और क्या-क्या लिखा जाए-‘है प्यास का नज़रिया क़तरा लगे समुन्दर, चाहे कोई बढ़ा ले चाहे कोई घटा ले’।
इस विशेषांक में राजन जी की सृजनात्मकता और उनके व्यक्तित्त्व को मोहित संगम जैसे कनिष्ठ/युवाओं से लेकर वरिष्ठ गीतकार/साहित्यकार डॉ. कुँअर बेचैन, श्री बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. शिवओम अम्बर, डॉ. हरिओम पवार, डॉ. उदय प्रताप सिंह, डॉ. योगेन्द्र शर्मा ‘अरूण’, डॉ. ब्रजेश मिश्र, डॉ. अश्वघोष, श्री कृष्ण शलभ, श्री सुरेन्द्र शर्मा, डॉ. विष्णु सक्सेना, श्री अरुण जैमिनी, श्रीमती सरिता शर्मा, डॉ. विष्णु सक्सेना, डॉ. प्रवीण शुक्ल, श्री विनीत चौहान, सुश्री सरिता शर्मा, डॉ. कीर्ति काले, डॉ. अनु सपन आदि के साथ-साथ राजन जी की अर्धांगिनी और ग़ज़ल की सशक्त हस्ताक्षर श्रीमती विभा मिश्रा जी के नज़रिये से पाठक एक साथ रू-ब-रू हो सकते हैं। श्रीमती विभा मिश्रा जी ने बहुत कम शब्दों में राजन जी के जीवन और व्यक्तित्व को बख़ूबी समेटा है, जिसे पढ़कर यह अनुमान सहज ही लग जाता है कि राजन जी के यहाँ तक के सफ़र में उनकी अहम् भूमिका रही है और उन्होंने प्रेम में त्याग और समर्पण को पूरी तरह उतारा है। सच ही कहा गया है-‘Behind every successful man, there is a woman’, अर्थात् हर सफ़ल पुरूष के पीछे एक मजबूत स्त्री होती है। 
बाकी तो अब हम बस यही कहेंगे-‘बात बोलेगी, हम नहीं’।
इन सभी विद्वजनों को साधुवाद देते हुए हम स्टार पेपर मिल्स लिमिटेड प्रबंधन के उन तमाम महानुभावों को भी साधुवाद देते हैं, जिन्होंने राजन जी की इस साहित्यिक यात्रा में उन्हें पूर्ण सहयोग दिया, जिससे वो नौकरी के साथ-साथ आज इस मुकाम तक पहुँच सके। अंत में हम श्री राजन जी को इस विशेषांक हेतु असीम शुभकामनाएं और बधाई देते हुए अब इस चर्चा को यहीं पर अल्प-विराम देते हैं क्योंकि अभी तो और भी कितने ही विशेषांक आने हैं। ‘अभी तो नापा है एक आसमान, अभी और कितने आसमान बाकी हैं’। यह सफ़र यूँ ही ज़ारी रहे, निरंतर चलता रहे। चरैवेति! चरैवेति!! चलते रहो! चलते रहो!! यह एक पड़ाव मात्र हो, मंज़िल नहीं...‘तू चला चल इस सफ़र में मील के पत्थर न गिन, वर्ना ये आदत थकन को पाँव तक ले जाएगी’।
 
इत्यलम्।।

सारिका मुकेश
(तमिलनाडु)


सारिका मुकेश


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पत्रिका- शीतल वाणी, अक्टूबर 2019-मार्च 2020 (संयुक्तांक), गीतवंत राजेन्द्र राजन विशेषांक
सम्पादकश्री वीरेन्द्र आज़म
प्रकाशनसहारनपुर (उ.प्र.)
मूल्य: 50/-रूपये
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1 comment:

  1. हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!!

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