चाहकर भी, न मिला कभी साथ, रहा अकेला/सच रे मन, तू बहुत अकेला, बड़ा झमेला
अंतश्चेतना की बहुर्मुखी अभिव्यक्ति हैं शब्द! हमारी
सकल मानसिक ऊर्जा,
बौद्धिक चिंतन, मनोद्वेग, एवं संवेदन बाह्य उदगार तो शब्द के रूप में ही प्रकट होते हैं। इन शब्दों
के सही संयोजन के साथ समुचित और मुखरित भाव प्रवाह, भाषा सौंदर्य
और काव्यात्मक ध्वनिओं का सम्प्रेषण का भी योग हो जाये, तो
निश्चित ही एक मृदुल, मन को मंत्र मुग्ध कर देने वाले
मधुश्रुत काव्य का सृजन हो जाता है। इससे
बढ़ कर, यदि इसे
किसी बहुज्ञ और कुशल रचनाकार की लेखनी मिल
जाये, तो उसका असरकारी प्रभाव और प्रभामंडल अत्यधिक विस्तृत
सा हो जाता है।
इन शब्दों का सही संयोजन कर गहरी सारगर्भित बात
कहने की करिश्माई कला तो हाइकु कविताओं के संग्रह ‘हवा
में शब्द’
की
कवयित्री डॉ. सारिका मुकेश जी से कोई सीखे। एक अतीव सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई
मुझे,
जब यह पुस्तक मेरे हाथ लगी। लगा, चतुर्दिक अजर,
अमर, अविनाशी ध्वनि तरंगें गुंजित हो रही हों, शब्दों की मधुकरियां मन को मंत्र मुग्ध कर रही हों। इसके पूर्व भी इस
सुप्रसिद्ध और निष्णात कवियित्रि की दो काव्य पुस्तकें, ’शब्दों के पुल’ (हाइकु
संग्रह) एवं ‘एक किरण उजाला’ (लघु छंद संग्रह) पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिल
चुका है और ये कहना अतिशयोक्ति नही होगी कि इन पुस्तकों ने भी मेरे मनोमस्तिष्क पर
एक अमिट असर छोड़ रखा है। महज चंद शब्दों में गहरे भाव और हृदयस्पर्शी संवेदनाओं को
उजागर करना एक जटिल काव्य विधा है और निसंशय इस विधा में डॉ. सारिका मुकेश अति
पारंगत प्रतीत हो रही हैं। प्रासंगिक पुस्तक ‘हवा में शब्द’ भी हाइकु
काव्य रूप में होने के कारण महज तीन पंक्तियों, मात्र 17 (
5-7-5) वर्णों की विशिष्ट कला में, जो साहित्य के क्षेत्र
में, मूलत: जापान से आयातित काव्य तकनीक है और जिसने कालचक्र
के अल्प अवधि में ही आशातीत लोकप्रियता प्राय: विश्व के सभी साहित्यिक सृजन के
क्षेत्र में प्राप्त कर लिया है, अत्यंत दुष्कर और दुरूह कार्य है, जिसकी परिकल्पना मात्र से मैं तनिक उलझन में पड़ जाता हूँ कि कदाचित यह
मुझसे संभव नहीं हो पायेगा, जबकि अनेकानेक काव्य सृजन (
काव्य के प्राय: सभी रंग, रस और शैली में) अतीव सहजता से मैं
कर चुका हूँ, जिसे प्रबुद्ध साहित्यकारों ने सराहा भी है।
फिर मैं ये भी मानता हूँ कि कविता सृजन तो एक
कार्यवाही है,
भले रचना छोटी हो या बड़ी, उसमें सर्जक की
बराबर की हिस्सेदारी, अकेलेपन और हमदर्दी का समावेश होना
चाहिये। कविता वही सार्थक है, जिसमें निर्बाध भाव प्रवाह,
स्वयं के प्रति निकटता, इंसानियत के प्रति
मुखरित संदेश और प्रकृति की रहस्यमयी अभिव्यक्ति परिलक्षित हो रही हो। निश्चित ही
अभीष्ट काव्य पुस्तक की लघु कविताओं में ये सारी विशेषतायें दृष्टिगोचर हो रही
हैं।
![]() |
सारिका मुकेश
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माँ सरस्वती की अति सुंदर और मनोहर वंदना के साथ
इस काव्य पुस्तक की शुरुआत होती है। अपनी निस्पृह मनोकामना को माँ शारदे के सामने कवयित्री
यों प्रकट करती हैं-‘हर लो तम/दिखाओ सदमार्ग/भर दो ज्ञान’। कितनी सहजता से माँ की
स्तुति करती हैं ये विदुषी रचनाकार-‘माँ सरस्वती/जब कृपा करती/विद्या बढ़ती’, और ये
यहीं नहीं रूक जाती,
बड़ी सरलता से अपनी चिर्कीषा माँ के समक्ष यों व्यक्त करती हैं-‘माँ
सरस्वती/अपनी कृपा करो/विद्या से भरो।
तकरीबन 285 हाइकुओं का संकलन
है ये पुस्तक, एक से बढ़ कर एक, अपने आप
में अभियक्ति की पूर्णता समेटे हुये। यहाँ सारी हाइकुओं की खुसूसियत पेश कर पाना
मेरे लिये न तो मुमकिन है और न ही समीक्षात्मक प्रस्तुति के दृष्टिकोण से सही।
फिर भी बानगी के तौर पर कुछेक कृतियाँ पेश हैं। एक
सार्थक संदेश: बोली बोलना एक कला है और डॉ. सारिका कहती हैं-‘पहले सदा/सोचो, परखो, तोलो/तो कुछ बोलो’, ‘नदी से बनो/औरों के काम
आओ/ऊँचे से बहो’, ‘वाणी हो मीठी/बनों सबके प्रिय/जैसे कोयल’।
मन के अकेलेपन को कवयित्री यों उजागर करती हैं-‘चाहने
पर भी/ना मिला साथ कभी/रहा अकेला’, ‘सच रे मन/तू बहुत अकेला/बड़ा झमेला’, ‘कभी
लगता/कोई नहीं अपना/इस जग में’। वाह! मात्र 17 वर्णों में कितनी गहरी और
मर्मस्पर्शी अभिव्यंजनाओं को प्रकट किया
है कवयित्री ने,
जिसे पढ़कर दिल तन्हाइयों की उदासियों के समुंदर में डूबने सा लगता
है।
एक अपनी अन्य रचना में डॉ. सारिका ने सुप्रसिद्ध
कवि हरिवंश राय बच्चन की महान कृति ‘मधुशाला’ का
अवलम्बन लेकर सम्प्रति में व्याप्त दुखद और विषम परिस्थियों के प्रति अपनी वेदनाओं
को यों व्यक्त किया है-‘बदला युग/बदले पीने वाले/औ’
मधुशाला’, ‘कहाँ समझा/बच्चन हर कोई/ये मधुशाला’, ‘भाई भाई में/अब बैर बढ़ाती/ये
मधुशाला’।
ये तो चंद प्रतिमान हैं , जो कवयित्री की लेखन कौशल्य, विलक्षण प्रतिभा और
अतलस्पर्शी संवेदनाओं और काव्य सृजन की निपुणता को उजागर कर रहे हैं। सच तो यह है
कि पुस्तक की एक-एक रचना पढ़ने के बाद दिलो-दिमाग पर एक गहरा प्रभाव छोड़ जाती है ।
अंतत: मैं इस रचनाकार की काव्य प्रतिभा की भूरि-भूरि
सराहना करते हुये साहित्य के क्षेत्र में इनके समुज्ज्वल भविष्य की अहर्निश कामना
करता हूँ और साथ ही पुस्तक की आशातीत लोकप्रियता हेतु सच्चे अंतर्मन से
शुभकामनायें सम्प्रेषित करता हूँ।
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सतीश वर्मा
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कवि एवं साहित्यकार
मुम्बई
पुस्तक
का नाम : ‘हवा में शब्द’ (हाइकु-संग्रह)
कविगण
: सारिका मुकेश
प्रकाशन
: एस. कुमार एण्ड कम्पनी, दिल्ली-110002
कुल
पृष्ठ: 112
मूल्य:
रु. 200/-
Bahut sundar ������������
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