मानवीय मन संवेदनाओं का पिटारा है, इसके भीतर
संवेदनाओं से भरा-पूरा एक संसार होता है। न जाने कितने ही क़िस्म के भाव कितने ही
रंगों में आकार लेते रहते हैं। गुज़रे ज़माने की स्मृतियाँ समंदर की लहरों की तरह
बार-बार लौटकर स्मृति-पटल के साहिल पर सिर पटकती रहती हैं और ज़हन में असंख्य चित्र
बनाती है और फ़िर न जाने कितनी ही देर तक हमारा मन उन पुरानी वादियों में विचरण
करने लगता है। ज़िन्दगी के उन ख़ूबसूरत लम्हों को हम सदा-सदा के लिए धरोहर के रूप
में सहेजकर रख लेना चाहते हैं। अपने मित्रजनों/परिचितों से उनकी चर्चा करना चाहते
हैं, उनसे सबको रू-ब-रू कराना चाहते हैं, जिससे उनका जीवन भी प्रेम की इस अमूल्य
सुगंध से सराबोर हो सके और इस मरुथल में उनको जीवंतता प्रदान कर जीवन के प्रति एक
सकारात्मक दृष्टिकोण बनाने में मदद करे क्योंकि हम सभी जानते हैं कि आज के इस
डिजीटल युग में हमारी संवेदनाएँ लुप्त-प्राय: होती दिख रही हैं और अपनत्व, प्रेम,
विश्वास को स्वार्थ, घृणा और छल-कपट लीलते जा रहे हैं, ऐसे माहौल में विशुद्ध
प्रेम और अपनी सांस्कृतिक विरासत की झलक मात्र से ज्येष्ठ माह की तपती दुपहरी में
गंगा-स्नान जैसा सुखद लगता है। हमें बेहद ख़ुशी है कि आज भी लोग इस विषय में न केवल
सोचते हैं बल्कि उसे लेखन का विषय भी बनाते हैं।
कुछ इसी तरह प्रेम और अपनी संस्कृति से लबालब
भरे शब्द-दीपों को प्रज्ज्वलित कर समाज में जन-चेतना को जागृत करने का महत्त्वपूर्ण
कार्य जो व्यक्ति कर रहे हैं, उन्हीं में श्री बी.एल. गौड़ जी का नाम आदर से लिया
जाता है। आज जबकि हम एक अजीब से कोलाहल भरे दौर से गुज़र रहे हैं, ऐसे में सच्चे मार्गदर्शकों की बेहद ज़रूरत है जो समाज को, इस देश को और
उसकी नौजवान पीढ़ी को सही दिशा दिखा सकें। हमें अपार प्रसन्नता है कि श्री गौड़ जी
अपनी लेखनी के माध्यम से इस देश की जनता को प्रेम और अपनी विराट संस्कृति की हाला
का रसास्वादन कराने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं।
श्री बी.एल. गौड़ जी से हमारा शब्द-परिचय एक
साहित्यिक पत्रिका में सद्यः प्रकाशित एक गीत के माध्यम से वर्ष फ़रवरी 2017 में
हुआ था। कभी-कभी उनसे हमारी फ़ोन पर गुफ़्तगू होती रही, कभी कुछ संदेशों का भी आदान
प्रदान हुआ। फिर मार्च माह में उन्होंने अपना एक कहानी-संग्रह ‘मीठी ईद तथा अन्य
कहानियाँ’ स्पीड पोस्ट से भिजवाया तो उनकी रचनाशीलता और व्यक्तित्व से और विस्तृत
परिचय हुआ। उनका अपनत्व/स्नेह भरा व्यवहार देख हम पति-पत्नी हतप्रभ रह जाते कि
बिना हमें देखे-मिले इतने संक्षिप्त से शब्द-परिचय में इतना स्नेह और अपनत्व आज के
इस युग में कैसे सम्भव हो सकता है? यह उनकी विनम्रता और सहज, सरल मन के साथ एक
विशिष्ट आत्मीयता का ही परिचय देता है। हम उनके इस स्नेह और आत्मीयता के लिए सदा
शुक्रगुज़ार रहेंगे कि उन्होंने अपने लेखन यात्रा-क्रम में हमें भी सहभागी होने का
अवसर दिया।
12 जून 1936 को अलीगढ जनपद के कौमला गाँव में जन्मे श्री बी. एल.गौड़ जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. और फिर सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और इसके अतिरिक्त इटालियन भाषा में डिप्लोमा और हिंदी विश्वविद्यालय इलाहाबाद से साहित्य रत्न किया। उन्होंने रेलवे में इंजीनियर के पद पर 1958 से 1989 तक कार्य किया और फिर स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के बाद 1995 में भवन निर्माण कम्पनी ‘गौड़ संस इण्डिया लिमिटेड’ का गठन किया और वर्तमान तक इस कम्पनी के चेयरमैन पद पर आसीन हैं। इसके अतिरिक्त नौ पुस्तकों और तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लेख, कविताएँ, कहानियाँ, संस्मरण आदि प्रकाशित होते रहने के साथ-साथ वे ‘दि गौड़संस टाइम्स’ पत्र के सम्पादक के रूप में साहित्यिक जगत् में सुविख्यात हैं। अनेकों सम्मान प्राप्त श्री गौड़ जी को उनके साहित्यिक अवदान को देखते हुए हिंदी विश्वविद्यालय भागलपुर ने उन्हें डी.लिट्. की मानक उपाधि से अलंकृत किया है।
12 जून 1936 को अलीगढ जनपद के कौमला गाँव में जन्मे श्री बी. एल.गौड़ जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. और फिर सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और इसके अतिरिक्त इटालियन भाषा में डिप्लोमा और हिंदी विश्वविद्यालय इलाहाबाद से साहित्य रत्न किया। उन्होंने रेलवे में इंजीनियर के पद पर 1958 से 1989 तक कार्य किया और फिर स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के बाद 1995 में भवन निर्माण कम्पनी ‘गौड़ संस इण्डिया लिमिटेड’ का गठन किया और वर्तमान तक इस कम्पनी के चेयरमैन पद पर आसीन हैं। इसके अतिरिक्त नौ पुस्तकों और तमाम पत्र-पत्रिकाओं में लगातार लेख, कविताएँ, कहानियाँ, संस्मरण आदि प्रकाशित होते रहने के साथ-साथ वे ‘दि गौड़संस टाइम्स’ पत्र के सम्पादक के रूप में साहित्यिक जगत् में सुविख्यात हैं। अनेकों सम्मान प्राप्त श्री गौड़ जी को उनके साहित्यिक अवदान को देखते हुए हिंदी विश्वविद्यालय भागलपुर ने उन्हें डी.लिट्. की मानक उपाधि से अलंकृत किया है।
कहानी-संग्रह ‘मीठी ईद तथा अन्य कहानियाँ’
वर्तमान के कैनवास पर अतीत के प्रसंगों के सुंदर कोलाज़ लिए दीखता है। भारतीय
संस्कृति की पूजा करने वाले और अपनी मिट्टी से जुड़े श्री गौड़ साहब अक्सर अपनी इन
कहानियों में अतीत की जाँच-पड़ताल संवेदनाओं के धरातल पर करते दिखाई देते हैं। उनकी
कहानियों में मिट्टी की सौंधी सुगंध, खेतों की हरियाली, गाँव,
पुष्प, प्रेम दिखाई पड़ते हैं। शहरी जीवन की
कृत्रिमता और मृत होती संवेदनाओं से वो भलीभांति परिचित हैं और वो इसके प्रति
चिंतित भी हैं कि यहाँ सब मुखौटे लगाकर जीते हैं। उनकी सजग और सचेतन दृष्टि से,
राजनैतिक परिवेश से लेकर शिक्षा, समाज,
संस्कृति, धर्म आदि जैसा कोई भी विषय नहीं बच
पाया है। इन विषयों से लेकर अपनी संस्कृति, संस्कार और
आदर्शों/मूल्यों पर उन्होंने अपनी कलम धारदार और पैने ढंग से बखूबी चलायी है जो उनकी
रचनाओं को अपनी पहचान देने में पूर्ण रूप से सक्षम है। तमाम विषमताओं के बावजूद वो
जीवन से निराश नहीं हैं, वो शब्द की महत्ता से अच्छी तरह परिचित हैं और उत्साह से
भरकर अपने शब्दों के माध्यम से सभी को प्रेम से हँसते हुए जीने का संदेश देते हैं।
पुस्तक की शीर्षक कहानी ‘मीठी ईद’ अपने भीतर भाईचारे की गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक
अभूतपूर्व मिठास संजोए है और तमाम जगत् को उस मिठास से लिप्त/संलिप्त होने का सपना
संजोती है, जिसके लिए कहा जाता है कि ‘सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा’। आज
के दौर में ऐसी कहानियों की विशेष आवश्यकता है जो आपसी भाईचारे और सौहार्दपूर्ण
माहौल बनाने में सहायक सिद्ध हों। सच कहें तो गौड़ साहब दिल से दिल की बातें करते
हैं; कहीं कोई किसी प्रकार की औपचारिकता, बनावट या आडम्बर नहीं है। शायद यही वजह
है कि हम कहानी से पूरी तरह जुड़ जाते हैं और उनकी प्रत्येक कहानी जहाँ पर ख़त्म
होती है, वहाँ से हमारे मन में विचारों की एक लम्बी श्रृंखला आरम्भ हो जाती है और
हम देर तक उसमें डूबे रह जाते हैं। वो इस धरती पर ही स्वर्ग की कामना करते हैं और
उन्होंने अपनी इन कहानियों के माध्यम से एक सुखद जीवन जीने का सन्देश जन-जन को
देने का सफल प्रयास किया है। हमारे थोड़े से प्रयासों से कितना कुछ बदल सकता है, यह
बात इस कहानी-संग्रह को पढ़कर अच्छी तरह समझ में समझ में आ जाती है। सरल और सहज
भाषा में लिखी यह पुस्तक आप एक बार पढ़ने को उठा लें तो फिर इसे समाप्त करके ही
उठेंगे। कहानियों को पढ़ते हुए आपको ऐसा प्रतीत होगा जैसे लेखक स्वयं आपको कहानी
सुना रहे हैं। ये कहानियाँ न केवल बड़े व्यक्तियों के लिए अपितु छोटे बच्चों के लिए
सहज सुग्राही हैं। इसका अन्दाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हमारे पाँच वर्षीय
पुत्र औरव और दस वर्षीय पुत्र अगस्त्य को सिर्फ़ एक बार सुना देने से यह कहानियाँ
उनको आज कंठस्थ हो गयी हैं और इन कहानियों से उपजी अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने
हेतु उसने स्वयं लेखक श्री बी.एल.गौड़ जी से फ़ोन पर देर तक बात भी की, जिनका समाधान
उन्होंने बड़े ही आत्मीयपूर्ण ढंग से किया।
कहने को तो अभी बहुत कुछ है पर इन कहानियों की गंगा-यमुना
में गोते लगाने और उसमें छिपे अनिर्वचनीय सुख का आनंद आपको स्वयं भी तो लेना है।
हम श्री बी.एल.गौड़ जी को उनके सृजन-कर्म हेतु अपनी ओर से सादर हार्दिक बधाई और
मंगलकामनाएँ देते हुए अपनी वाणी को यहीं विराम देते हैं।
इत्यलम्।
सारिका मुकेश
(तमिलनाडु)
पुस्तक : मीठी ईद तथा अन्य कहानियाँ (कहानी-संग्रह)
लेखक : बी.एल. गौड़
प्रकाशक :
सजग प्रकाशन,
दिल्ली-110 092
पेपरबैक संस्करण, मूल्य : रु. 150/-
जय श्री कृष्ण!
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