Thursday, 21 November 2019

नयी पीढ़ी को सौंपें यह अमर इतिहास की थाती...





                       बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                       ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी...

बचपन में पढ़ी हुई सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित झाँसी की रानीकविता की यह पंक्तियाँ प्राय: हमारी जुबान पर आ जाती हैं। ऐतिहासिक पात्रों को आधार बनाकर लेखक नयी पीढ़ी का उसकी अपनी प्राचीन संस्कृति/सभ्यता से न केवल साक्षात्कार कराता है, बल्कि उसे एक नयी दिशा, सोच और ओज भी प्रदान करता है। आज हमारी नई पीढ़ी के लिए ऐसे राष्ट्र-भक्त और संस्कृति का पोषण करने वाले चरित्रों की प्रस्तुति करने वाले लेख़क कम ही बचे हैं। फिर भी यह हमारे लिए अत्यंत सुख की बात है कि वर्तमान परिवेश में ओज के प्रख्यात कवि श्री कृष्ण मित्र जी की काव्यात्मक पुस्तक महाबली छत्रसालहमारी युवा पीढ़ी को इतिहास के एक अमर योद्धा की वीरता और शौर्य से रूबरू कराने में पूर्ण सफ़ल हुई है। ऐसी पुस्तकों के विषय में हम यहाँ स्वयं उन्हीं की वाणी में कहना चाहेंगे-‘महापुरुषों के जीवन से  नया आकाश मिलता है/नये इतिहास के अध्ययन का विश्वाश मिलता है’, और ‘नयी पीढ़ी को सौंपें  यह अमर इतिहास की थाती/यही   आधार है, इस  देश के विश्वाश की थाती’।
इसी के साथ अब वो अपनी पुस्तक का प्रस्तुतिकरण करते हुए लिखते हैं-‘इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत कथा जलती मशालों की/कथा उन शक्ति पुत्रों की अनूठे छ्त्रसालों की/कि जिनके स्मरण से ही शक्ति का आधार मिलता है/नये उत्साह के विश्वाश का संस्कार मिलता है’। 
झाँसी के चारों ओर फैले सौ-सवा सौ मील का क्षेत्र बुंदेलखंड कहलाता है और वहाँ के निवासी बुंदेले पुकारे जाते हैं। इसी बुंदेले वंश में जन्मे वीर चम्पतराय के तीन पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र का नाम था छत्रसाल। वो बचपन से ही वीर था। जब वो दस-बारह बरस की आयु में था तो देवी-मंदिर के एक उत्सव देखने गया, तभी वहाँ पर कुछ मुगल सैनिक मंदिर तोड़ने आ गए। यह जानते ही छत्रसाल ने उन पर हमला कर दिया और मार गिराया। वो पूरी उम्र औरंगजेब के अत्याचारों के खिलाफ़ लड़ता रहा। इसी क्रम में वो राजा जयसिंह और वीर शिवाजी और बाजीराव पेशवा आदि से भी मिला और सभी को अपनी वीरता से चकित किया।
श्री कृष्ण मित्र जी की पुस्तक महाबली छत्रसालके कुछ चित्रण यहाँ प्रस्तुत हैं, देखिए-‘नमन उनको कि जो इस राष्ट्र मन्दिर का पुजारी है/कि जिसने प्राण देकर आरती माँ की उतारी है/फूलों की डलिया वामहस्त दक्षिण कर में तलवार लिए/विजयी मुद्रा में छत्रसाल आ रहा रूप साकार लिए’। शिवाजी और छत्रसाल के मिलन को छत्रसाल के प्रति शिवाजी के उद्गारों को उन्होंने कितनी खूबसूरती से सँवारा  हैं-‘और कहा हे छत्रसाल तुम वीर बहुत अलबेले हो/छत्रिय हो तुम वीर साहसी अद्भुत सुभट बुंदेले हो/विंध्यवासिनी माता के भी सच्चे भक्त पुजारी तुम/माँ की रक्षा करने के भी हो सच्चे अधिकारी तुम’।
ओरछा के देवी के मन्दिर को ध्वस्त करने हेतु औरंगजेब की आज्ञा से फिदाईखान अपने सैनिकों के साथ निकल पड़ता है। यह खबर पाते ही वीर बुंदेले युवकों के जत्थे ग्वालियर की ओर कुछ करते हैं और फिदाईखान को मुँह की खानी पड़ती है। देखिए-‘अनेपक्षित हमले से आया तूफ़ान फिदाईखानों में/भागो भागो का शोर हुआ अतिघोर फिदाईखानों में.....बस इन्हीं क्षणों में छत्रसाल भी पहुँच गया मैदानों में/स्वातंत्र्य समर में कूद पड़ा भर दिया जोश अरमानों में/बिजली सी कड़की दुश्मन पर चहुँओर घिर गया घबराया/उस छत्रसाल के हमलों से मुगलों की टूट गई काया/हर ओर विजय का सिंहनाद थे गूँज रहे जय के नारे/हर हर बम बम जय महाकाल थे बोल रहे सैनिक सारे/मैदान छोड़कर भाग खड़े सब सैन्य फिदाईखानों के/सब ओर छ्त्रसाली ध्वज थे हर कोने में मैदानों के’।
अंत में अपनी काव्य-पुस्तक को विराम देते हुए मित्र जी लिखते हैं-‘वह जीवन पर्यन्त मौत से था खेला/अंतिम समय बयासी का था बुंदेला/आओ उसकी इस समाधि को नमन करें/छत्रसाल जो वीर्यवान था महाबली/बुंदेले सरताज कि करियो भली-भली’।
यह छत्रसाल के चरित्र की विशेषता ही कही जाएगी कि भूषण कवि ने उसके जीवन पर छत्रसाल-बावनीलिखी और आज भी बुन्देलखंडवासी सबेरे उठते ही उसका पुण्यस्मरण करते हुए कहते हैं-छत्रसाल महाबली। करियो भली-भली।।
श्री कृष्ण मित्र जी की यह काव्यात्मक पुस्तक महाबली छत्रसालके जीवन-चरित से हमें रूबरू होने का सुअवसर देती है। आप इसे एक बार गाते हुए पढ़ना शुरू करें तो फिर स्वयं ही इसके साथ-साथ आगे बढ़ते चले जाएंगे और पुस्तक कब ख़त्म हो गई पता ही न चलेगा। हम श्री मित्र जी को इस सांस्कृतिक धरोहर को नयी पीढ़ी को देने के लिए हृदय के अंतर्तम से धन्यवाद देते हैं और उनके स्वस्थ, सुखी और दीर्घ जीवन की कामना करते हैं; वो शतायु हों और इसी तरह हमें अपनी लेखनी से दिशा दिखाते रहें। इत्यलम।


         
सारिका मुकेश

सारिका मुकेश




 पुस्तक का नाम: महाबली छत्रसाल (प्रबंध-काव्य)
लेखक/कवि: श्री कृष्ण मित्र
प्रकाशक: असीम प्रकाशन, गाजियाबाद (उ.प्र.)
मूल्य: 200/- रूपए





No comments:

Post a Comment